आप सब 'पाखी' को बहुत प्यार करते हैं...

गुरुवार, अक्तूबर 27, 2011

अपूर्वा का पहला जन्म-दिन और 200 वीं पोस्ट


आज तो मेरी सिस्टर अपूर्वा (तान्या) का पहला जन्म-दिन है. कित्ता तेजी से समय बीत गया, पता ही नहींचला. अपूर्वा (तान्या) का जन्म हुआ बनारस में, परवरिश पोर्टब्लेयर में और उसके पहले जन्म-दिन पर हम हवाई जहाज से कोलकात्ता से लखनऊ की यात्रा पर हैं. हवाई जहाज में जन्मदिन मनाने का मजा ही कुछ अलग होगा. फिर शाम को लखनऊ में पापा की तरफ से डिनर भी तो है !!



अपूर्वा को जल्दी से आप भी अपना शुभाशीर्वाद और प्यार दीजियेगा..
.और हाँ, मुझे भी क्योंकि 'पाखी की दुनिया' ब्लॉग की यह 200 वीं पोस्ट है. देखा, 200 वीं पोस्ट और बहना का जन्मदिन एक ही दिन सेलिब्रेट कर लिया न. कल तो दिवाली थी, वैसे भी आप सभी ने खूब मिठाइयाँ खाई होंगीं. आज भी इस ख़ुशी में मिठाइयाँ खाएं और हमें आशीर्वाद दें !!

मंगलवार, अक्तूबर 25, 2011

दीवाली आ गई...


कल तो दीपावली है. ढेर सारी फुलझड़ियाँ छुड़ाने का दिन. पटाखों से तो मुझे बहुत डर लगता है. उनकी आवाज़ सुनकर तो मैं अपने कान बंद कर लेती हूँ...
और हाँ, इस दिन तो तो लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा भी होगी और फिर ढेर सारी मिठाइयाँ भी. लक्ष्मी-गणेश जी के स्वागत के लिए ही तो घर में खूब सफाई भी होती है. पूजा के बाद ढेर सारे दिए जलाये जायेंगे..कित्ता अच्छा लगता है. मानो सारे तारे ही जमीं पर आ गए हों. उस पर से झिलमिल करती झालरें और मोमबत्तियां...वाह ! मम्मा बता रही थीं की इसी दिन भगवान श्री राम अयोध्या लौटे थे और इस ख़ुशी में अयोध्यावासियों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था, तभी से दीपावली मनाई जाती है. मैं तो चली दीपावली की तैयारियाँ करने..मतलब ममा का साथ देने।

आप सभी को दीपावली की खूब बधाइयाँ और प्यार !!

रविवार, अक्तूबर 23, 2011

मैं बड़ी हो रही हूँ.

अब मैं बड़ी हो रही हूँ.





ये देखिए, कित्ती लम्बी हो गई.






..पर ये पापा के शूज अभी मेरे पैरों में क्यों नहीं आते ??









पर इनको पहनकर घर में तो घूम ही सकती हूँ.

गुरुवार, अक्तूबर 20, 2011

आपको आइसक्रीम खाना अच्छा लगता है...

मुझे तो आइसक्रीम खाना बहुत अच्छा लगता है. स्ट्राबेरी फ्लेवर मुझे बहुत पसंद है. ममा-पापा को तो बटर स्काच भाता है. कभी-कभी पिस्ता, वनिला और बटर स्काच भी खा लेती हूँ.

मेरे स्कूल के सामने भी इक शॉप है. पहले तो मुझे इसके बारे में नहीं पता था, पर अब पता चल गया है. स्कूल से निकलो, आइसक्रीम खाओ. वैसे रास्ते में अनुमोद और उमा बेकरी भी तो हैं.

...अले, आपने तो बताया ही नहीं कि आपको कौन सा फ्लेवर पसंद है . जब आपसे मुलाकात होगी तो आपकी पसंद की आइसक्रीम खा लेंगें !!

मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011

अंतर्राष्ट्रीय सायकिल यात्री हीरालाल यादव के साथ पाखी

अन्तराष्ट्रीय सायकिल यात्री हीरालाल यादव अंकल जी का नाम तो आपने सुना ही होगा. चलिए यदि नहीं सुना तो उनके बारे में 'इण्डिया टुडे' और कुछेक पत्रिकाओं में उनके बारे में प्रकाशित एक रिपोर्ट पढ़ लीजिये-


हीरालाल यादव का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. बगैर सीट वाली साइकिल से 54 वर्षीय हीरालाल यादव पिछले एक दशक में देश और दुनिया में 65,000 किमी की दूरी नाम चुके हैं, कभी वे किसी युद्धबंदी के परिजनों के पास बैठकर खत लिख रहे होते हैं तो कभी शहीद के परिजन से दुःख बांटते हैं, अन्य दिनों में वे युद्धबंदियों की रिहाई पर केंद्रित अपनी प्रदर्शनी में व्यस्त होते हैं या फिर सभागार में अभागे फौजियों और उनके परिजनों पर लिखी कविताएं सुना रहे होते हैं। गोरखपुर जिले के, पेशे से बीमा एजेण्ट हीरालाल यादव का यह जुनून 1997 में आजादी की स्वर्ण जयंती से शुरू हुआ. वे साइकिल से सद्भावना यात्रा पर निकल पड़े. 1999 में उन्होने कारगिल सलाम सैनिक यात्रा की. इसके बाद तो यह सिलसिला उनके जीवन का हिस्सा ही बन गया। फ़िलहाल वे परिवार के साथ मुंबई में रह रहे हैं. हाल ही में 26-11 की आतंकी घटना में शहीद एन.एस. जी. कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन के पिताजी के साथ इण्डिया गेट से गेट-वे-इण्डिया तक की सायकिल यात्रा करके हीरालाल यादव पुन: चर्चा में रहे !!



सफलता का गुरः कोई काम नामुमकिन नही है.
सबसे बड़ी बाधाः जब लोग इस अभियान के ’फायदे’ पर बहस करते हैं.
सबसे बड़ी ताकतः फल की दुकान चलाने वाली उनकी पत्नी शकुन्तला, जो अक्सर दौरे पर रहती है.
जिंदगी का सबसे अहम क्षणः 30 जुलाई 99 का दिन जब कारगिल में सैनिकों ने उनकी अगवानी की और उन्हें सगे भाई से ज्यादा सगा कहा.

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अन्तराष्ट्रीय सायकिल यात्री हीरालाल यादव अंकल जी पोर्टब्लेयर में हमारे घर आए. उन्होंने पापा के बारे में पढ़ा था और फिर मुंबई से फोन पर संपर्क किया. अब वे यहाँ हमारे मेहमान के रूप में पोर्टब्लेयर में हैं.
भारत के अलावा वे थाईलैंड, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया में भी विभिन्न विषयों पर चेतना जगाने हेतु सायकिल-यात्रा कर चुके हैं. इसके अलावा नेपाल और मारीशस की भी यात्रा कर चुके हैं. हाल ही में नेपाल के राष्ट्रपति राम बरन यादव जी ने उन्हें सम्मानित भी किया है. मैंने उन्हें बताया कि सायकिल तो मैं भी चलाती हूँ, अपनी सायकिल भी उनको दिखाई. यह देखिये मेरी सायकिल, मैं और हीरालाल अंकल जी. हीरालाल अंकल जी मेरी सायकिल देखकर तो बहुत खुश हुए. पर वे इस पर तो बैठ नहीं सकते, नहीं तो टूट जाएगी.

वे यहाँ अंडमान में अपने चित्रों की एक प्रदर्शनी भी लगा रहे हैं. उनकी प्रदर्शनी का विषय है-युद्धबंदी सैनिक, बालिका भ्रूण-हत्या, पर्यावरण. इसे वे 'संवेदना जागृति कला प्रदर्शनी' नाम से देश भर में लगते हैं. यह उनकी 177 वीं कला प्रदर्शनी होगी. भारत के विभिन्न प्रान्तों के अलावा मारीशस में भी वे कला-प्रदर्शनी लगा चुके हैं.
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(हीरालाल यादव अंकल जी पर लखनऊ से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'दस्तक टाइम्स' (मई, 2011) की एक रिपोर्ट भी यहाँ पढ़ सकते हैं)



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(पोर्टब्लेयर से प्रकाशित अख़बार "Andaman Sheekha" में प्रकाशित एक रिपोर्ट ''Hira Lal Yadav: A man in a noble, but difficult mission'' भी देखें-)

The man who travelled across the length and breadth of India to meet families of Indian Prisoners of War (PoW), locked in Pakistan Jail and Martyrs, is in Andaman now with his noble mission of sensitizing all Indians about the pain and sufferings of POWs and Martyrs.

The man who left hundreds of people crying and weeping with his heart touching poems on Indian POWs and Martyrs is now planning to hold an Exhibition at Port Blair’s Andaman House, where he will display letters written by POWs and Martyrs of Operation Vijay and other wars on 17 and 18 October 2011.


Mr. Yadav had travelled several states to meet families of Indian Soldiers and collect important letters in his seatless bicycle, which he rides to feel himself the pain and sufferings, experienced by our Indian Jawans.

Father of Major Unni Krishnan, Martyr of Mumbai’s 26/11 operation, who had drove away the Chief Minister of Keral from his house, had proudly cycled with Mr. Yadav from New Delhi’s India gate to Gate of India at Mumbai to support his cause.

"It is pathetic to see how much people remember soldiers who sacrifice their lives for the sake of our country. My motive is simple. To generate enough publicity and make students and the public aware so that the POWs are released," said Mr. Yadav while talking to Andaman Sheekha today. Hope people will make best of Mr. Yadav’s visit and his exhibition.
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.......तो देखा, आज मैंने एक अच्छे व्यक्ति से आपको मिलवाया ना. यह कभी भी आपके यहाँ भी जा सकते हैं!!

रविवार, अक्तूबर 16, 2011

अपूर्वा (तान्या) के नए बाल कब आएंगें..

आज मेरी सिस्टर अपूर्वा (तान्या) का मुंडन-संस्कार संपन्न हो गया.फिर तो उसके सर से सारे बाल गायब हो गए.




देखिये, कित्ते ध्यान से सोच रही है कि मेरे बाल कहाँ चले गए.


यह संस्कार पोर्टब्लेयर में हैडो स्थित गणेश जी के मंदिर में संपन्न हुआ.




मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद अपूर्वा के बाल हमने समुद्र में प्रवाहित कर दिए.




बाल उतरवाते समय तो अपूर्वा खूब रोई. बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया गया.




मुंडन से पहले ली गई घर पर फोटो.

अब तो इंतजार है कि अपूर्वा (तान्या) के नए बाल कब आएंगें !!

शुक्रवार, अक्तूबर 14, 2011

वाकर में मस्ती करती अपूर्वा (तन्वी)


ये मिलिए, हमारी छोटी सिस्टर तन्वी से.

इनका निक नेम है तन्वी, तान्या और मैं बुलाती हूँ आइमा.

अब तो तान्या का स्कूल वाला नाम भी ममा-पापा ने रख दिया है- अपूर्वा (Apurva)

पर अभी तो इसके स्कूल जाने में बहुत दिन बाकी हैं.

अभी तो ये चलना सीख रही हैं, अपने पैरों पर.

..और मेरा काम है तन्वी को ट्रेनिंग देना. तभी तो जल्दी से अपने पैरों पर चलने लगेगी. फिर ना तो किसी की अंगुली पकड़ने की जरुरत और ना इस वाकर की.

बुधवार, अक्तूबर 12, 2011

पापा की जुबानी : डाक-टिकटों से जुडी रोचक बातें

आजकल 'राष्ट्रीय डाक सप्ताह' चल रहा है. पापा तो खूब व्यस्त हैं. बच्चों के लिए खूब रंग-बिरंगी डाक-टिकटें भिजवाई जा रही हैं. ढेर सरे कार्यक्रम भी आयोजित हो रहे हैं. मुझे तो अक्सर खूबसूरत डाक टिकटों को देखने का मौका मिलता है. मैंने तो कानपुर में सोने के डाक टिकट भी देखे थे और खुशबुओं वाले भी. अभी कुछ दिनों पहले पापा ने खादी का डाक टिकट भी दिखाया, जिस पर राष्ट्रपिता गाँधी जी का चित्र बना है. तो चलिए आज डाक-टिकटों से जुडी कुछ रोचक बातें जानते हैं पापा श्री कृष्ण कुमार यादव से ही-



डाक-टिकट भला किसे नहीं अच्छे लगते. याद कीजिये बचपन के वो दिन, जब अनायास ही लिफाफों से टिकट निकालकर सुरक्षित रख लेते थे. न जाने कितने देशों की रंग-बिरंगी डाक टिकटें, अभी भी कहीं-न-कहीं सुरक्षित हैं. आज जब करोड़ों में डाक-टिकटों की नीलामी होती है तो दुर्लभ डाक टिकटों की ऐतिहासिकता और मोल पता चलता है. आज तो यह सिर्फ शौक ही नहीं, बल्कि व्यवसाय का रूप भी धारण कर चुका है.डाक-टिकटों का संग्रह विश्व की सबसे लोकप्रिय रुचियों में से एक है। इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान हमें मनोरंजन के माध्यम से मिलता है, इसलिए यह है शिक्षा का मनोरंजक साधन।

डाक-टिकट संग्रह का शौक हर उम्र के लोगों में रहा है। बचपन में ज्ञान एवं मनोरंजन, वयस्कों में आनंद और तनावमुक्ति तथा बडी उम्र में दिमाग को सक्रियता प्रदान करने वाला इससे रोचक कोई शौक नहीं। 1940-50 तक डाक-टिकटों के शौक ने देश-विदेश के लोगों को मिलाना शुरू कर दिया था। टिकट इकट्ठा करने के लिए लोग पत्र-मित्र बनाते थे, अपने देश के डाक-टिकटों को दूसरे देश के मित्रों को भेजते थे और दूसरे देश के डाक टिकट मंगवाते थे। पत्र-मित्रता के इस शौक से डाक-टिकटों का आदान-प्रदान तो होता ही था, लोग विभिन्न देशों के विषय में अनेक ऐसी नई-नई बातें भी जानते थे, जो किताबों में नहीं लिखी होती थीं।

ब्रिटेन की महिलाओं में अपनी रानी विक्टोरिया के चित्रवाले डाक टिकट इकज्ञ करने का जुनून था। वे ही बनी डाक टिकट संग्रह करने वाले शौक की जननी। महात्मा गांधी दुनिया के अकेले ऐसे शख्स हैं, जिन्हें विश्व के 80 देशों ने अपने डाक टिकट पर जगह दी। अब तक 250 से ज्यादा डाक टिकट बापू के नाम से जारी किए जा चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी-इंडिपेक्स 2011 में पहली बार डाक विभाग ने खादी के कपड़े पर गांधी जी की फोटो छपा विशेष डाक टिकट भी जारी किया .


जानिए डाक-टिकटों से जुडी कुछ रोचक बातें-

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ई-मेल और एसएमएस के दौर में डाक टिकटों की जरूरत भले ही कम हो गई हो, लेकिन उनका महत्व नहीं घटा है। डाक टिकट में दर्ज होती है हमारी राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान। पुराने डाक टिकट बन जाते हैं हमारी विरासत, जिनकी बोली लगती है लाखों-करोडों में।

डाक -टिकट का इतिहास तकरीबन 171 साल पुराना है। विश्व का पहला डाक टिकट 1 मई 1840 को ग्रेट ब्रिटेन में जारी किया गया । इंग्लैंड में वर्ष 1840 में डाक-टिकट बेचने की व्यवस्था शुरू की गई। 1840 में ही सबसे पहले जगह-जगह लेटर-बॉक्स भी टांगे जाने लगे।

द पेनी ब्लैक
यह ब्रिटेन का डाक टिकट है। दुनिया का ऐसा पहला डाक टिकट, जिसे चिपकाया जा सकता था। यह 1 मई, 1840 को जारी हुआ था। यह अन्य डाक टिकटों की तरह दुर्लभ तो नहीं, पर मूल्यवान जरूर है। जो टिकट अभी इस्तेमाल में नहीं लाया गया, उसकी वर्तमान कीमत है तकरीबन 3 हजार डॉलर।

सिंदे डाक टिकट
भारत में पहला डाक-टिकट 1 जुलाई, 1852 को सिंध प्रांत में जारी किया गया, जो केवल उसी प्रांत में उपयोग के लिए सीमित था। ये एशिया के पहले डाक-टिकट तो थे ही, विश्व के पहले गोलाकार डाक टिकट भी थे।

द थ्री स्कीलिंग येलो
यह डाक टिकट है स्वीडन का। इसे वर्ष 1855 में छापा गया। नाम के अनुरूप इसका रंग पीला है। आज केवल एक डाक टिकट ही बचा है। इसकी वर्तमान कीमत है तकरीबन 11.6 करोड रुपये।

गुयाना का टिकट
यह है ब्रिटिश उपनिवेश गुयाना का डाक टिकट। इसकी छपाई में काफी घटिया किस्म के कागज का इस्तेमाल हुआ। मैजेंटा रंग पर काले रंग का यह डाक टिकट भी है बेहद दुर्लभ। वर्ष 1980 में जब इसकी नीलामी हुई थी, तब इसकी बोली लगी 9 लाख 35 हजार डॉलर की।

हवाईयन मिशनरीज
ये हैं हवाई साम्राज्य के पहले डाक टिकट। इनकी छपाई हुई थी वर्ष 1951 में। वह भी काफी पतले कागज पर। इसलिए इनकी गुणवत्ता बेहद खराब है। आज कुछ ही टिकट सुरक्षित बचे हैं। इनमें से एक जो उपयोग में नहीं आ सका था, वह बिका था तकरीबन 7 लाख 60 हजार डॉलर में।

मॉरीशस के डाक टिकट
ये हैं मॉरीशस के पहले दो डाक टिकट। इनमें से एक डाक टिकट जारी होने के बाद उपयोग में नहीं आ पाया। 1993 में डेविड फेल्डमैन ने इन टिकटों की नीलामी की। इनमें से पहला नारंगी रंग वाला डाक टिकट बिका था तकरीबन 1 लाख 72 हजार 260डॉलर में, वहीं दूसरे टिकट को बेचा गया 1 लाख 48 हजार, 850 डॉलर में।

द इनवर्टेड जेनी
यह डाक टिकट अमेरिका का है। गलत ढंग से छपाई होने की वजह से इस टिकट को दुर्लभ के साथ-साथ बेहद मूल्यवान भी माना जाता है। जब-जब भी इसकी नीलामी हुई, तो बोली लाखों डॉलर में लगी। जैसे 2005 के अक्टूबर माह में इसकी ढाई लाख डॉलर की बोली लगी, तो नवंबर 2007 में यह 977 लाख डॉलर से भी ज्यादा में बिका।

अपनी फोटो वाले टिकट
अमेरिका और इंग्लैंड में अपनी फोटो डाक टिकट पर छपवाने की लोकप्रिय योजना स्माइली की तरह भारत में भी इंदिपेक्स -2011 के दौरान पहल की गई. इसके तहत महज 10 मिनट में कोई भी व्यक्ति अपनी फोटो डाक टिकट पर छपवा सकता है. शुल्क देना होगा 150 रुपये।

सोने के डाक-टिकट
सोने के डाक-टिकट की बात सुनकर बड़ा ताज्जुब होता है। भारतीय डाक विभाग ने 25 स्वर्ण डाक टिकटों का एक संग्रहणीय सेट जारी किया है। इसके लिए राष्ट्रीय फिलेटलिक म्यूजियम (नई दिल्ली) के संकलन से 25 ऐतिहासिक व विशिष्ट डाक टिकट इतिहासकारों व डाक टिकट विशेषज्ञों द्वारा विशेष रूप से भारत की अलौकिक कहानी का वर्णन करने के लिए चुने गए हैं, ताकि भारत की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी धरोहरों की जानकारी दी जा सके और महापुरूषों को सच्ची श्रद्धांजलि।सोने के इन डाक टिकटों को जारी करने के लिए डाक विभाग ने लंदन के हाॅलमार्क ग्रुप को अधिकृत किया है। हाॅलमार्क ग्रुप द्वारा हर चुनी हुई कृति के अनुरूप विश्व प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा समान आकार व रूप के मूल टिकट के अनुरूप ही ठोस चांदी में डाक टिकट ढाले गये हैं और उन पर 24 कैरेट सोने की परत चढ़ायी गयी है। ‘‘प्राइड आफ इण्डिया‘‘ नाम से जारी किये गए ये डाक टिकट डायमण्ड कट वाले छिद्र के साथ 2.2 मि0मी0 मोटा है। 25 डाक टिकटों का यह पूरा सेट 1.5 लाख रूपये का है यानि हर डाक टिकट की कीमत 6,000 रूपये है। इन डाक टिकटों के पीछे भारतीय डाक और हाॅलमार्क का लोगो है।

खुशबूदार डाक टिकट
भारतीय डाक विभाग ने चंदन, गुलाब और जूही की खुशबू वाले डाक टिकट भी जारी किये हैं. भारतीय इतिहास में पहली बार 13 दिसम्बर 2006 को डाक विभाग ने खुशबूदार डाक टिकट जारी किये। चंदन की खुशबू वाले इस डाक टिकट को तैयार करने के लिए इसमें इंग्लैण्ड से आयातित चंदन की खुशबू वाली एक इंक की परत चढ़ाई गई, जिसकी खुशबू लगभग एक साल तक बरकरार रहेगी। चंदन की खुशबू वाले डाक टिकट के बाद 7 फरवरी 2007 को वसन्त पर्व की मादकता के बीच वैलेन्टाईन डे से कुछ दिन पहले ही डाक विभाग ने गुलाब की खुशबू वाले चार डाक टिकट जारी किये। इसके बाद जूही की खुशबू वाले दो डाक टिकट 26 अप्रैल 2008 को डाक विभाग द्वारा जारी किये गये हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि वर्ष 1840 में ब्रिटेन में विश्व का प्रथम डाक टिकट जारी होने के बाद मात्र चार देशों ने ही खुशबूदार डाक टिकट जारी किए। इनमें स्विटजरलैण्ड, थाईलैण्ड व न्यूजीलैण्ड ने क्रमशः चाॅकलेट, गुलाब व जैस्मीन की खुशबू वाले डाक टिकट जारी किए हैं, तो भूटान ने भी खुशबूदार डाक टिकट जारी किए हैं। अब भारत इस श्रेणी में पाँचवां देश बन गया है, जिसने चंदन की खूशबू वाला विश्व का प्रथम डाक टिकट एवं गुलाब व जूही की खूशबू वाले विश्व के द्वितीय डाक टिकट जारी किये हैं।

-कृष्ण कुमार यादव

(डाक-टिकटों के बारे में यदि आपको और भी जानकारियाँ चाहिए तो 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग भी देख सकते हैं)

सोमवार, अक्तूबर 10, 2011

कैसी है मेरी मेहंदी

दशहरे की छुट्टियाँ ख़त्म, फिर से स्कूल. पर इन छुट्टियों में मैंने तो खूब मस्ती की.

पार्क घूमती, रेस्तरां में खाना खाती, माँ दुर्गा की मूर्तियाँ देखती, बैलून फुलाती और उड़ाती, सिस्टर तन्वी के साथ खूब मस्ती...और यह मेहंदी भी तो.

ये देखिए...कैसी लग रही है मेरी मेहंदी. खूब चढ़ी है ना.

गुरुवार, अक्तूबर 06, 2011

बुधवार, अक्तूबर 05, 2011

पोर्टब्लेयर में नवरात्र और दुर्गा पूजा

आजकल तो चारों तरफ नवरात्र की धूम है. यहाँ पोर्टब्लेयर में भी खूब मूर्तियाँ सजी हैं. मैं भी ममा-पापा और तन्वी के साथ घूमने गई. कित्ती खूबसूरत मूर्तियाँ सजी हैं. अकेले पोर्टब्लेयर में करीब 15 से ज्यादा मूर्तियाँ स्थापित हैं.


पोर्टब्लेयर में बंगाली लोग काफी हैं, फिर तो दुर्गा-पूजा बड़े भव्य रूप में मनाई जाती है.



यहाँ हिंदी साहित्य कला परिषद्, पोर्टब्लेयर द्वारा राम लीला का मंचन जरुर किया जाता है, पर दशहरे पर अपने यहाँ की तरफ रावण-वध नहीं होता.



देखा बैठे-बैठे मैंने इत्ती दूर से माँ दुर्गा जी के दर्शन करा दिए.