आप सब 'पाखी' को बहुत प्यार करते हैं...

सोमवार, मई 31, 2010

साइंस सिटी पोर्टब्लेयर में पाखी

इस साल के आरंभ में मैं साइंस-सिटी, कोलकाता घूमने गई थी और अब यहाँ पोर्टब्लेयर में भी साइंस सिटी घूमने गई. वैसे यह साइंस सिटी उतना बड़ा तो नहीं है, पर ठीक है.

पोर्टब्लेयर स्थित यह साइंस सिटी कर्बिंस-कोव बीच के रास्ते में पड़ता है. शहर से इसकी दूरी मात्र 4 किलोमीटर है. समुद्र के किनारे थोड़ी ऊंचाई पर स्थित यह साइंस सेंटर भारत का छठवाँ साइंस सिटी सेंटर है. और हाँ, इसी 30 मई को इस साइंस सेंटर ने अपनी स्थापना के 7 वर्ष पूरे कर लिए.

समर वेकेशन में तो यहाँ बच्चे घूब घूमने आते हैं और तमाम क्रिएटिव कोर्सेज भी यहाँ चलते हैं.

अभी कुछ दिन पहले ही यहाँ 3-डी थियेटर भी आरंभ हुआ है.

यहाँ तो बायो टेक्नालाजी के बारे में जानकारी दी गई है. जब बड़ी हो जाऊँगी, फिर समझ में आयेगा.

अले, ये तो मैं सौरमंडल में पहुँच गई. कित्ता अच्छा लग रहा है यहाँ.

मिसाइल तो बढ़िया दिख रही है, एक फोटो यहाँ भी खिंचवा लेती हूँ.

यहाँ कुछ मजेदार एक्टिविटी दिख रही हैं.

अब जरा इस बाल को ट्राई करती हूँ.

अले वाह, यह कित्ता ऊँचा जा रहा है और फिर यहीं आकर गिरेगा.

इस ट्रेन को देखिये तो इसका कोई छोर ही नहीं पता चलता. इनके बीच तमाम शीशे लगे हुए हैं, जिसके चलते यह इत्ती बड़ी लगती है.

और इस नल से तो हमेशा पानी ही निकलता रहता है, पर टब कभी नहीं भरता.

अब मैं भी अपनी दोनों हथेलियाँ इस पर रखकर देखती हूँ कि सुई कहाँ तक पहुँची. यह शरीर के आवेश को मापती है.

जरा इसे भी तो ट्राई करूँ.

ये मेरे पीछे मनुष्य का ब्रेन बनाया गया है. इसे ध्यान से देखो तो समझ में आता है कि यह कैसे कार्य करता होगा.

चलते-चलते इसका भी आनंद ले लूँ .

आप भी पोर्टब्लेयर आयें, तो साइंस-सिटी जरुर घूमने जियेगा !!

बुधवार, मई 26, 2010

सपने में आई परी


पता है कई कल मेरे सपने में एक प्यारी सी परी आई। उसको देखकर मैं बहुत खुश हुई. उसके साथ मैं खूब खेली और खूब इंजॉय किया. और हैं, परी के साथ मैं असमान में भी घुमने गई. नन्हें-नन्हें टिमटिमाते तारे कित्ते सुन्दर लग रहे थे. जब भी में परी से कुछ माँगती तो परी अपनी जादू की छड़ी घुमाती और सब हाजिर. परी ने मुझे गाने भी सुनाये और ढेर सारे खिलौने व चाकलेट भी दिए. ॥अचानक मेरी नीद खुल गई तो देखा वहां कुछ नहीं था. न कोई परी और न ही खिलौने व गिफ्ट. फिर तो मैं जोर-जोर से रोने लगी. मम्मी-पापा भी जग गए और मुझे प्यार से चुप कराया कि परी तो सपनों में आती है और प्यार करके चली जाती है. मैंने सोचा कि काश कहीं सच्ची सी परी होती जो मुझे कभी भी छोड़ कर नहीं जाती तो कित्ता अच्छा लगता...!

परी तो आ नहीं सकती, फिर मैंने मम्मी-पापा को अपने इस सपने पर एक प्यारा सा गीत लिखने को कहा, आप भी पढ़िए न और बताइए कि मेरा सपना, मेरी परी और यह गीत कैसा है-

पाखी ने सपने में देखा
इक प्यारी सी परी
आसमां से उतरी वो
हाथों में लिए छड़ी।

हाथों में लिए छड़ी
जादू खूब दिखाती
ढेर सारी बातें करती
गीत भी गुनगुनाती।

पाखी के संग खूब खेलती
प्यार से इठलाती
पाखी को संग ले
आसमां की सैर कराती।

झिलमिल तारों में
पाखी भी खो जाती
चाकलेट-गिफ्ट पाकर
पाखी खूब खुश हो जाती।
(इस पोस्ट की चर्चा साप्ताहिक काव्य मंच–२( संगीता स्वरुप) चर्चा मंच-170 के अंतर्गत भी देखें)

सोमवार, मई 24, 2010

अंडमान में आए बारिश के दिन

आजकल अंडमान में खूब बारिश हो रही है. जब देखो तब बिजली कड़कने लगती है और बादल गरजने लगते हैं. कित्ता डर लगता है, बिजली की गडगडाहट सुनकर. पर इन सबके बीच छाता लेकर घूमने का मजा ही कुछ और है.

कभी बारिश आती है, तो कभी जाती है।

जब तेज हवा चलती है तो ऐसे लगता है कि मेरी छतरी तो गई. मेरे साथ-साथ पेड़-पौधे और ये गुलमोहर के फूल भी बारिश का मजा ले रहे हैं. अब देखिये, बारिश में भीगा-भीगा पोर्टब्लेयर भी कित्ता सुन्दर लगता है.



बुधवार, मई 19, 2010

नेवी शिप आईएनएस राणा पर एक दिन

इस संडे को मैं भारतीय नौसेना के जहाज देखने गई. अंडमान में आ तो गई हूँ, पर अभी तक जल यान की सैर करना बाकी है. अक्सर हेलीकाप्टर या क्रूज से ही हम लोग घूमने जाते हैं. पर अब सोच रही हूँ कि पानी के जहाज में भी किसी दिन सैर कर आऊं।
पिछले दिनों पूर्वी बेड़े के जहाज अंडमान-निकोबार द्वीप समूह द्वीपों के दौरे पर थे , जिनमें आईएनएस राणा, आईएनएस रणवीर, आईएनएस रंजीत, आईएनएस ज्योति, आईएनएस कुलिश, आईएनएस कृपण, आईएनएस किर्च तथा आईएनएस खुकरी शामिल थे. गमन-आगमन के दौरान विदेशों में तैनाती के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के मार्ग में पूर्वी बेड़ा आता है।
पूर्वी बेड़े के जहाज अंडमान सागर में अपनी उपस्थिति और निगरानी मिशन अक्सर चलते रहते हैं. हम आईएनएस राणा पर गए और उसे खूब मजे से देखा.
कित्ता विशाल था यह जहाज. यह जहाज युद्ध के समय कम आता है और इस पर हेलीकाप्टर भी उतर सकता है. इस पर तोप, रडार, मिसाइल जैसे तमाम टेक्नालाजी लगी हुई हैं ताकि लड़ाई में दुश्मनों को यह जवाब दे सके. हम केबिन के अन्दर भी गए और वहाँ से बाहर का नजारा भी देखा. केबिन के अन्दर बैठकर कैप्टन और अन्य लोग पूरी गतिविधियों पर निगाह रखते हैं. अन्दर का दृश्य तो बड़ा रोमांचकारी लग रहा था. यह पूर्णतया वातानुकूलित था. चार बार तो हमें सीढियाँ चढ़नी पड़ीं. भारतीय नौसेना के इस जहाज को देखने में बड़ा मजा आया और बहुत कुछ सीखने-जानने को भी मिला. चलते-चलते हमने कैप्टन के केबिन में साथ बैठकर चाय और जूस पिया और उन्हें धन्यवाद भी दिया.

सोमवार, मई 17, 2010

पाखी की पेंटिंग

*** ये रही मेरी ड्राइंग. आप जरुर बताना कि कैसी लगी***..और हाँ, ये भी आप बताना कि इसमें मैंने क्या-क्या बनाया है !!

शुक्रवार, मई 14, 2010

जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा

आपको याद है पहली बार अख़बार में आपकी फोटो कब प्रकाशित हुई थी. ...याद कीजिये. है न कठिन काम. शायद बर्थ-डे कॉलम में...नहीं, फिर स्कूल की पत्र-पत्रिका में..वो भी नहीं..फिर तो मुझे भी नहीं पता. हाँ, अपना पता है. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बर्थडे कॉलम की छोड़ दें तो किसी अख़बार में मेरी फोटो पहली बार 15 जुलाई, 2009 को प्रकाशित हुई थी और अख़बार का नाम था आई-नेक्स्ट (i-next). आज 14 जून, 2010 है यानी आज से 11 महीने पहले. चलिए आपको भी अख़बार का वो पेज दिखाती हूँ-

अब आप सोचेंगें कि ये बात मुझे कैसे याद आई. पिछले दिनों पापा ने अपने पर प्रलय का इंतजार नाम से एक पोस्ट लिखी, इस पोस्ट की चर्चा जनसत्ता अख़बार में भी हुई. इस लेख में बहुत कुछ मेरी बातें लिखी गई थीं. यह बात मैंने पापा को बताई थीं और अपने इस ब्लॉग पर विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर लिखी भी थीं. अख़बार में अपने नाम देखकर बहुत अच्छा लगा. और अब जब स्कूल खुलेगा तो अपने टीचर को भी दिखाउंगी, वो भी बहुत खुश होंगीं. आप भी इसे पढ़िएगा- और हाँ चलते-चलते एक बात और याद आई कि दीनदयाल शर्मा अंकल जी ने अपने टाबर टोली (1-15 मई, 2010 अंक) अख़बार में भी मेरी ड्राइंग लगाई है. साथ में मेरी फोटो और मेरे बारे में भी. आप भी देखिये न और फिर बताइए कि कैसी है-


बुधवार, मई 12, 2010

मुंडा पहाड़ बीच पर मस्ती

अंडमान में जब तक जमकर बारिश नहीं होती, तब तक घूमने का खूब मजा है. मैं तो यहाँ खूब घूम रही हूँ.

पिछले दिनों जब चिड़िया टापू गई तो वहाँ से आगे मुंडा पहाड़ बीच पर भी गई. दूर-दूर तक फैला समुद्र कित्ता अच्छा लगता है.

यहाँ शाम को बीच पर जमकर नहाना कित्ता अच्छा लगता है. फिर हलकी-हलकी ठण्ड भी लगने लगती है.

किनारे रेत में चित्रकारी करना तो मुझे खूब भाता है.

और ये मैंने रेत का महल बनाया.

आप भी जब कभी अंडमान आयें तो चिड़िया टापू देखने के बाद शाम को मुंडा पहाड़ बीच पर जरुर जाकर मस्ती करें !!

रविवार, मई 09, 2010

मम्मी मेरी सबसे प्यारी (आज मदर्स डे)

आपको पता है आज मदर्स डे है. हर साल मई माह के दूसरे रविवार को यह सेलिब्रेट किया जाता है. मैं तो अपमी मम्मी से बहुत प्यार करती हूँ. मम्मी के बिना कोई काम तक नहीं करती. जब मुझे पहली बार स्कूल भेजा गया तो मैं मम्मी के लिए खूब रोई, पूरे एक साल. मुझे लगता था कि मम्मी को भी क्लास में मेरे साथ बैठना चाहिए. पर धीरे-धीरे बात समझ में आ गई कि यदि सभी बच्चों की मम्मी उनके साथ क्लास में बैठेंगी तो फिर क्लास कैसे चल पायेगी. आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ की मम्मी कहीं गई हों और मैं उनके साथ नहीं हूँ.

आज मदर्स डे पर मैंने सुबह जगते ही मम्मी को विश किया और उन्हें एक प्यारा सा कार्ड और चाकलेट दिया. साथ में प्यारे-प्यारे गुलाब के फूल भी दिया और अपनी एक ड्राइंग भी दी. आज संडे भी है, सो पापा भी घर पर रहेंगे. शाम को हम लोग मरीना पार्क घूमने जायेंगे, जहाँ मैं खूब झूले झूलूँगी, स्लैडिंग करुँगी, सी-सा पर मस्ती करुँगी, हैंगिंग राड और स्प्रिंगी हार्स इंजॉय करुँगी. समुद्र के किनारे दूर तक घुमूंगी और बोटिंग भी करुँगी. और जब थक जायेंगे तो पापा हम लोगों को किसी रेस्तरां में शानदार डिनर कराएँगे.

मेरी मम्मी बहुत बढ़िया है। मुझे पता है कई बार मैं उन्हें बहुत परेशान करती हूँ पर मम्मी कभी बुरा नहीं मानती. मुझे ढेर सारा प्यार-दुलार देती हैं. मेरी मम्मी सबसे प्यारी हैं.
मम्मी मेरी सबसे प्यारी,
मैं मम्मी की राजदुलारी।
मम्मी प्यार खूब जताती,
अच्छी-अच्छी चीजें लाती।
करती जब मैं खूब धमाल,
तब मम्मी खींचे मेरे कान।
मम्मी से हो जाती गुस्सा,
पहुँच जाती पापा के पास।
पीछे-पीछे तब मम्मी आती,
चाॅकलेट देकर मुझे मनाती।
थपकी देकर लोरी सुनाती,
मम्मी की गोद में मैं सो जाती।






गुरुवार, मई 06, 2010

जब पाखी बनी खरगोश (Rabbit)

जब मैं कानपुर में कंगारू किड्स, प्ले स्कूल में पढ़ती थी तो हमारी टीचर हमें खूब हँसाती थीं. रोज नए-नए रूप में आतीं- कभी भालू, तो कभी शेर, कभी तोता, कभी खरगोश, कभी बिल्ली तो कभी बन्दर..बड़ा मजा आता था. हर हफ्ते हम लोगों को भी कुछ न कुछ टास्क दिया जाता था. एक दिन स्कूल पार्टी में हम सभी बच्चों को कुछ-न-कुछ बनना था. उस दिन मैं खरगोश बनी थी. घर पर ली गई उन तस्वीरों को आप भी देखें और बतायें कि आपकी पाखी खरगोश बनकर कैसी लग रही है...गुमसुम सा खरगोश..सोच में डूबा खरगोश..मस्ती के मूड में खरगोश...कुछ कह रहा है ये खरगोश ..

( इस पोस्ट की चर्चा आज ख़ुशी का दिन फिर आया (चर्चा मंच - 147) के अंतर्गत भी देखें )









मंगलवार, मई 04, 2010

आ गई गर्मी की छुट्टियाँ

कितने दिन से इंतजार था इस दिन का ... आ ही गया। अब 1 मई से गर्मी की दो महीने की छुट्टी हो गई. गर्मी भी कोई अच्छी लगने वाली चीज है, पर जब इसके साथ इत्ती छुट्टियाँ जुडी हुई हों तो फिर मजा तो आयेगा ही. अब अपने घर आज़मगढ़ और ननिहाल गाजीपुर घूमने जाऊँगी.

कित्ते दिन हो गए वहाँ गए. फिर बुआ की नन्हीं परी से भी तो मिलना है. दादी-दादा के साथ बैठकर ढेर सारी बातें करुँगी और चाचू को तो खूब परेशान करुँगी. मौसी की शादी के बाद उनसे पहली बार ननिहाल में मिलूँगी. नाना-नानी से ढेर सारी कहानियां सुनूँगी. मामा लोग आयेंगें तो उनके साथ भैया-दीदी लोग भी आएंगे..फिर तो खूब मौज और धमाल होगी. किसी का डर नहीं, कोई टेंशन नहीं, बस खूब मस्ती करूँगीं. जबसे अंडमान आई हूँ, पहली बार घर और ननिहाल जाऊँगी..अब तो मेरे पास भी बहुत कुछ है शेयर करने के लिए !!

रविवार, मई 02, 2010

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में पाखी

आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में ताऊ जी ने मेरी एक प्यारी सी कविता -'मिल्क पाउडर ही पी जाएँ' प्रकाशित की है। ताऊ जी ने मेरी फोटो और परिचय प्रकाशित करते हुए लिखा है कि- अब इस पोस्ट में पढिये इस प्रतियोगिता की सबसे नन्ही प्रतिभागी कु. अक्षिता (पाखी) की ये व्यंग रचना...




लेखिका परिचय :
नाम- अक्षिता
निक नेम - पाखी
जन्म- 25 मार्च, 2007 (कानपुर)
मम्मी-पापा - श्रीमती आकांक्षा - श्री कृष्ण कुमार यादव
अध्ययनरत - नर्सरी, कार्मेल स्कूल, पोर्टब्लेयर
रुचियाँ - प्लेयिंग, डांसिंग, ड्राइंग, बाल कवितायेँ पढ़ना व लिखना, ब्लागिंग
मूल निवास - तहबरपुर, आजमगढ़ (यू.पी.)
वर्तमान पता - द्वारा- श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवा, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
ई-मेल- akshita_06@rediffmail.com ब्लॉग- पाखी की दुनिया

मिल्क पाउडर ही पी जाएँ

दूध पीना मुझे भाता
पर बड़ी परेशान हूँ
किससे मैं शिकायत करूँ
होती बड़ी हैरान हूँ ।

दूध वाला ना अच्छा दूध दे
बस पानी की भरमार है
जब उससे करूँ शिकायत
रोये, महँगाई की मार है।

दूध में पानी या पानी में दूध
कुछ भी समझ ना आये
इससे अच्छा तो अब
मिल्क पाउडर ही पी जाएँ।

अच्छी लगी ना मेरी ये कविता..अब आप भी ये बात ताऊ जी को वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : कु0 अक्षिता (पाखी) लिंक पर जाकर बता आइये !!